रिश्तों की राजनीति- भाग 7
भाग 7
सान्वी कैफ़े से उठकर जा ही रही होती है कि तभी अक्षय की एंट्री होती है। वो उसके वाले टेबल पर जाकर बैठ जाता है और कहता है…. लो आ गया तुमसे मिलने, बोलो क्या बात करनी है?
मैं बस तुम्हारे व्यवहार में आए अचानक बदलाव की वजह जानना चाहती हूँ। तुम मुझे नजरअंदाज क्यों कर रहे हो?
हाँ, कर रहा हूँ नज़रअंदाज़, तो और क्या करूँ? जब तुम्हें मेरी फ़िक्र नहीं तो मैं क्यों तुम्हारी फ़िक्र में जलूँ?
मतलब, समझी नहीं?
मैं इतने दिन कॉलेज नहीं आया, लेकिन तुमने एक बार भी फोन करके यह जानने की कोशिश नहीं की, कि मैं ठीक हूँ या नहीं, कहीं मेरी तबियत खराब तो नहीं?
मेरे सब दोस्तों ने मेरी खैरियत पूछने के लिए फोन किया, एक सिर्फ तुम्हारा न फोन आया, न कोई मैसेज।
मैंने कई बार सोचा तुम्हें मैसेज करने का अक्षय। फिर लगा हो सकता है तुम कहीं बाहर घूमने गए होंगे कुछ दिन के लिए, बस यही सोचकर मैसेज नहीं किया कि कहीं तुम डिस्टर्ब न हो जाओ।
पहली बात मैं हनीमून मनाने नहीं गया था, जो तुम्हारे मैसेज से डिस्टर्ब हो जाता और दूसरी बात मैं घर में बीमार पड़ा था।
अक्षय की बातों ने सान्वी को अपनी ही नज़र में शर्मिंदा कर दिया था।
उसे समझ नहीं आ रहा था वो अक्षय से क्या कहे।
वो बस इतना ही कह सकी…..मुझे माफ़ कर दो अक्षय। गलती मेरी है, मुझे तुम्हें फोन करना चाहिए था , लेकिन बस चाहते हुए भी नहीं कर पायी।
हद है! एक फोन करने में भी तुम्हें इतना सोच पड़ गया, हैरानी की बात है। तुम्हें आज के युग में नहीं, पाषाण युग में पैदा होना चाहिए था।
अक्षय की बातें सुनकर सान्वी की आँखों में आँसू आ गए। उसने आंसू पोंछते हुए कहा कि हाँ वो ठीक कह रहा है, उसे पाषाण युग में ही पैदा होना चाहिए था। तुम ठहरे आज के युग के और मैं ठहरी पाषाण युग की, हमारे बीच दोस्ती सम्भव नहीं है। शुक्रिया तुम मेरे कहने पर मुझसे मिलने के लिए यहाँ आए, मैं चलती हूँ अक्षय।
अक्षय बात बिगड़ते देख उसे रोक लेता है और बात सम्भालने के लिए कहता है….क्या एक दोस्त को इतना भी हक़ नहीं कि दूसरे दोस्त पर अपनी नाराज़गी जाहिर कर सके। तुम ऐसे नहीं जा सकती यहाँ से, चुपचाप बैठो और मेरी बात सुनो….जब मैं घर पर बीमार पड़ा था तो हर दिन तुम्हारे फोन का इंतज़ार करता था यह सोचकर कि मुझे कॉलेज में नहीं पाकर, मेरी खोज खबर लेने के लिए फोन करोगी। लेकिन फोन क्या तुम्हारा एक मैसेज तक नहीं आया, बस इसी बात से मेरे दिल को बहुत दुख पहुंचा और मुझे गुस्सा आ गया।
सॉरी सान्वी, गलती मेरी है। मैं यह भूल गया था कि मेरे और तुम्हारे घर का माहौल काफी अलग है। लेकिन मुझे यह अच्छा लगा कि मेरा तुम्हारे मैसेज का जवाब न देने के बाद भी तुम मुझसे मिलने कैफ़े आयीं।
अच्छा, अब बहुत हो गया सॉरी-सॉरी, जल्दी से बोलो…..मुझसे दोस्ती करोगी?
सान्वी मुस्कराते हुए कहती है….हाँ।
कुछ देर वो कैफ़े में बैठते हैं, फिर वो सान्वी को उसके घर के पास छोड़कर घर चला जाता है। रास्ते में अक्षय मन ही मन सोच रहा होता है……. सान्वी बड़ी कड़क लड़की है। कैसे उसे पाषाण युग का कहने पर एकदम से उठकर जाने लगी। कहाँ, मैं उसको सॉरी बुलवाना चाहता था, कहाँ उसने मुझसे सॉरी कहलवा दिया। अच्छा हुआ जो मैंने बात सम्भाल ली, वरना लड़की हाथ से निकल जाती और सारी मेहनत पानी में चली जाती।
लड़कियाँ खुद पीछे चलकर आती हैं मेरे और यहाँ उल्टा मुझे इसके पीछे घूमना पड़ रहा है। खैर है भी तो सबसे अलग, अनछुई सुंदरता है उसकी, सिर से पाँव तक खूबसूरती में लिपटी हुई है। उसके पीछे घूमना तो बनता है। बात तो है लड़की में।
अक्षय से मिलकर सान्वी चेहरा ख़ुशी से चमक रहा था। घर के अंदर घुसने से पहले उसने एक गहरी लंबी साँस ली, अपने मनोभावों को संयत किया और फिर घर की घँटी बजाई। दरवाजा अभिजीत ने खोला था। घर में घुसते ही उसने पहला सवाल दागा….कहाँ गयी थी, इतनी देर कैसे हो गयी आने में?
वो दादा, रिया के साथ मॉल घूमने गयी थी।
वाह! मॉल घूमने गयी थी और हाथ में कोई शॉपिंग बैग नहीं।
सब बहुत महँगा था, इसलिए न रिया ने और न ही मैंने कुछ खरीदा। मैक डी से बर्गर खाया और बस विंडो शॉपिंग करके घर आ गए।
तेरे सवाल ख़त्म हो गए हो तो दादा, मैं फ्रेश हो लूँ?
हाँ-हाँ ठीक है, आई बाजार गयी है भाजी लेने, रसोई में चाय पड़ी है, पीनी है तो गरम करके पी ले।
सान्वी फटाफट बाथरूम में घुसती है और चैन की साँस लेते हुए कहती है बाप रे बाप! दादा के सवाल, ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अगर गलती से पता चल गया कि मैं झूठ बोलकर अक्षय जगताप पाटिल से मिलने गयी थी तो पता नहीं मेरा क्या हाल करेंगे? सारा मूड खराब कर दिया।
फिर खुद को देखती है आईने में और मुस्कुराने लगती है। अक्षय का चेहरा बार-बार उसकी आँखों के सामने आ रहा होता है।
रात को खाना खाने के बाद पढ़ाई करने के लिए किताब उठाती है तो उसमें भी अक्षय नज़र आ रहा होता है। वो अपनी इस बेवकूफी पर मुस्कुराती है और गुनगुनाने लगती है….
मराठी गाना
"याडं लागलं गं याडं लागलं गं
रंगलं तुझ्यात याडं लागलं गं
वास ह्यो ऊसांत येई कस्तुरीचा
चाखलंया वारं ग्वाडं लागलं गं"
गाने का अर्थ है कि तुम्हारा ख्याल मुझे पागल कर रहा है। गन्ने में सी कस्तूरी की महक आ रही है और हवा का स्वाद मीठा लग रहा है।
तभी अभिजीत आता है और उसके सिर पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहता है…..पढ़ाई में ध्यान दे, किताब गाना गाने के लिए खोली है या पढ़ने के लिए।
सान्वी गाना बन्द कर देती है और किताब में ध्यान लगाने की कोशिश करती है, पर चाहते हुए भी ध्यान लग नहीं रहा होता है क्योंकि दिल और दिमाग में अक्षय छाया होता है।
❤सोनिया जाधव
Seema Priyadarshini sahay
24-May-2022 08:50 PM
बहुत ही खूबसूरत भाग
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Neelam josi
24-May-2022 08:09 PM
बहुत खूब
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Gunjan Kamal
24-May-2022 12:04 PM
शानदार भाग
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